इसे लेख में हम Doppler Effect in Hindi में जानेगे और इससे सम्बंधित जैसे – प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव, डॉप्लर प्रभाव किससे संबंधित है, डॉप्लर प्रभाव का सूत्र ,डॉप्लर प्रभाव का उपयोग, डॉप्लर प्रभाव किसे कहते हैं? और भी बहुत कुछ डॉप्लर प्रभाव के बारे में जानेगे तो ये लेख आप अंत तक जरुर पढ़े.
डॉपलर प्रभाव एक वैज्ञानिक घटना है जो ध्वनि और प्रकाश तरंगों के यात्रा करने के तरीके को प्रभावित करती है। यह एक अवधारणा है जिसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में, खगोल विज्ञान से लेकर मौसम विज्ञान तक और यहां तक कि हमारे दैनिक जीवन में भी किया जाता है। डॉपलर प्रभाव को समझने से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि एंबुलेंस के पास आने या पीछे हटने पर हमें सायरन बदलने की आवाज क्यों सुनाई देती है, या चलती कार की हेडलाइट से प्रकाश एक स्थिर कार से अलग क्यों दिखाई देता है।
इस गाइड में, हम डॉपलर प्रभाव की पेचीदगियों में तल्लीन होंगे, यह पता लगाएंगे कि यह ध्वनि और प्रकाश तरंगों की आवृत्ति और तरंग दैर्ध्य को कैसे प्रभावित करता है। इस अवधारणा को समझने में आसान बनाने में सहायता के लिए हम वास्तविक दुनिया के कुछ उदाहरण भी देखेंगे।
डॉप्लर प्रभाव क्या है? – What is the Doppler Effect in Hindi?
Doppler Effect in Hindi – डॉपलर प्रभाव तरंगों में देखी जाने वाली एक घटना है, जैसे ध्वनि या प्रकाश तरंगें, जहां तरंग की आवृत्ति तरंग के स्रोत के रूप में बदलती प्रतीत होती है या पर्यवेक्षक एक दूसरे के सापेक्ष चलता है।
उदाहरण के लिए, जब ध्वनि तरंगें उत्सर्जित करने वाली कोई वस्तु, जैसे सायरन वाली कार, एक पर्यवेक्षक की ओर बढ़ती है, तो ध्वनि तरंगें संकुचित हो जाती हैं, जिससे उच्च आवृत्ति और उच्च पिच होती है। इसके विपरीत, जब वस्तु प्रेक्षक से दूर जाती है, तो ध्वनि तरंगें खिंचती हैं, जिससे कम आवृत्ति और कम पिच होती है।
प्रकाश तरंगों के साथ समान प्रभाव देखा जा सकता है, जैसे कि जब किसी तारे का रंग बदलता हुआ प्रतीत होता है, जब वह पर्यवेक्षक की ओर या दूर जाता है। वस्तुओं या कणों की सापेक्ष गति को मापने के लिए डॉपलर प्रभाव का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान और चिकित्सा इमेजिंग।
डॉप्लर प्रभाव कैसे काम करता है?
डॉपलर प्रभाव तरंग के स्रोत और प्रेक्षक के बीच सापेक्ष गति को बदलकर काम करता है। जब स्रोत प्रेक्षक की ओर बढ़ रहा होता है, तो तरंग की तरंगदैर्घ्य कम हो जाती है और आवृत्ति बढ़ जाती है। दूसरी ओर, जब स्रोत प्रेक्षक से दूर जा रहा होता है, तो तरंगदैर्घ्य अधिक हो जाता है और आवृत्ति कम हो जाती है।
यही प्रभाव तब होता है जब प्रेक्षक स्रोत की ओर या उससे दूर जा रहा होता है। यदि पर्यवेक्षक स्रोत की ओर बढ़ रहा है, तो तरंग दैर्ध्य कम हो जाता है और आवृत्ति बढ़ जाती है। यदि प्रेक्षक स्रोत से दूर जा रहा है, तो तरंगदैर्घ्य अधिक हो जाता है और आवृत्ति कम हो जाती है।
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ध्वनि में डॉप्लर प्रभाव – Doppler Effect in Sound in Hindi
जब कोई ध्वनि-स्रोत अपने स्थान पर स्थिर रहते हुए ध्वनि उत्पन्न करता है, तो उससे कुछ दूरी पर खड़े श्रोता को उसी आवृत्ति की ध्वनि सुनाई देती है जिस आवृत्ति की ध्वनि स्रोत से उत्पन्न होती है। परन्तु जब ध्वनि-स्रोत अथवा श्रोता अथवा दोनों गति की अवस्था में होते हों, तो श्रोता को ध्वनि की आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होती है। यदि इस गति के फलस्वरूप स्रोत तथा श्रोता के बीच की दूरी घट रही होती है, तो श्रोता को स्रोत की आवृत्ति बढ़ी हुई प्रतीत होती है।
इसके विपरीत, यदि उनके बीच की दूरी बढ़ रही होती है, तो श्रोता को आवृत्ति घटी हुई प्रतीत होती है। स्रोत तथा श्रोता की सापेक्ष गति के कारण, स्रोत की आवृत्ति में होने वाले आभासी परिवर्तन को ‘डॉप्लर प्रभाव’ कहते हैं क्योंकि डॉप्लर ने ही सन् 1842 में इस प्रभाव की व्याख्या की थी।
डॉप्लर प्रभाव उदाहरण: जब हम प्लेटफॉर्म पर खड़े होते हैं तथा दूर से सीटी देता हुआ इंजन प्लेटफॉर्म की ओर आता है, तो हमें सीटी की ध्वनि तीक्ष्ण (shrill) अर्थात् ऊँची आवृत्ति की प्रतीत होती है परन्तु जब इंजन प्लेटफॉर्म को पार करके हमसे दूर जाने लगता है, तो वही ध्वनि हमें मोटी अर्थात् नीची आवृत्ति की प्रतीत होने लगती है। इसी प्रकार यदि हम मोटर में बैठकर किसी मिल की ओर जा रहे हों जिसका साइरन बज रहा हो, तो हमें साइरन की ध्वनि तीक्ष्ण प्रतीत होती है परन्तु यदि हम मिल से दूर जा रहे हों, तो वहीं ध्वनि हमें अपेक्षाकृत मोटी प्रतीत होने लगती है।
डॉप्लर के प्रभाव का अध्ययन हम तीन भागों में करेंगे: केवल ध्वनि-स्रोत की गति का प्रभाव केवल श्रोता की गति का प्रभाव, एक साथ दोनों की गतियों का प्रभाव।
ध्वनि स्त्रोत गतिमान है और प्रेक्षक(श्रोता) स्थिर है (Sound source is moving and Observer is stationary):

माना चित्र 1 (a) में S तथा O क्रमशः ध्वनि स्रोत तथा श्रोता की स्थितियाँ हैं। माना स्रोत की वास्तविक आवृत्ति n है तथा ध्वनि का वेग v है। तब स्रोत से 1 सेकण्ड में n तरंगें निकलेगी जो कि v वेग से चलेंगी। यदि स्रोत स्थिर हो, तो n तरंगें SO दूरी में फैल जायेंगी जबकि SO = v (चित्र 1(a))। अतः एक तरंग की लम्बाई अर्थात् तरंगदैर्घ्य \lambda =\frac{v}{n} होगी।
अब, माना कि ध्वनि-स्रोत S वेग vs से श्रोता O की ओर चल रहा है। तब 1 सेकण्ड में निकलने वाली n तरंगें,v दूरी में न फैलकर केवल (v – vs) दूरी में ही फैलेगी क्योंकि 1 सेकण्ड में ध्वनि-स्रोत भी श्रोता की ओर vs दूरी चल लेता है (चित्र b)। अतः अब तरंगदैर्घ्य छोटी हो जायेगी। माना कि यह λ’ है, तब
\lambda '=\frac{v-v_{s}}{n}इस प्रकार श्रोता को λ’ तरंगदैर्ध्य की तरंगें प्राप्त होंगी। अतः उसे ध्वनि की आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होगी। यदि यह आवृत्ति n’ हो, तो n'=\frac{v}{\lambda '}
n'=\frac{v}{\frac{v-v_{s}}{n}}
n'=\frac{vn}{v-v_{s}}
n'=n\left (\frac{v}{v-v_{s}} \right )——(1)
चुकी \frac{v}{v-v_{s}}> 1
अतः n'> n
अर्थात् सुनाई देने वाली (आभासी) आवृत्ति, वास्तविक आवृत्ति से अधिक है। इस दशा में श्रोता को स्रोत की ध्वनि तीक्ष्ण (ऊँचे तारत्व की) प्रतीत होती है। यदि ध्वनि-स्रोत, श्रोता से दूर जा रहा हो, तो तरंगदैर्घ्य बढ़कर \frac{v+v_{s}}{n} हो जायेगी। इस दशा में ध्वनि की आभासी आवृत्ति
n'=n\left (\frac{v}{v+v_{s}} \right ) ——–(2)
चुकी \frac{v}{v+v_{s}}< 1
अतः n'< n
अर्थात् आभासी आवृत्ति, वास्तविक आवृत्ति से कम है। अतः इस दशा में श्रोता को स्रोत की ध्वनि मोटी (नीचे तारत्व की ) प्रतीत होती है।
प्रेक्षक(श्रोता) गतिमान है और ध्वनि स्त्रोत स्थिर है (Observer is moving and Sound source is stationary):

मान लो कि ध्वनि स्रोत S स्थिर है तथा श्रोता O, वेग v० से स्रोत की ओर आ रहा है। यदि श्रोता भी स्थिर होता, तो वह 1 सेकण्ड में स्रोत से आने वाली n तरंगे प्राप्त करता (चित्र 2a ) । परन्तु चूँकि यह स्वयं भी 1 सेकण्ड में vo दूरी स्रोत की ओर चल लेता है, अतः वह n तरंगों के अतिरिक्त v० दूरी में स्थित v०/λ तरंगें भी प्राप्त कर लेता है। (चित्र 2 b)। अतः श्रोता को 1 सेकण्ड में प्राप्त होने वाली कुल तरंगे अर्थात् ध्वनि की आभासी आवृत्ति,
n'=n+\frac{v_{0}}{\lambda }=n+\frac{v_{0}}{v/n}
\left [ \because \lambda =\frac{v}{n} \right ]
अथवा n'=n+\frac{nv_{0}}{v}
n'=n\left (1+\frac{v_{0}}{v} \right )
n'=n\left (\frac{v+v_{0}}{v} \right )———-(3)
चुकी \frac{v+v_{0}}{v}>1 अतः n’ > n
अर्थात् आभासी आवृत्ति, वास्तविक आवृत्ति से अधिक है। अतः इस दशा में श्रोता को स्रोत की ध्वनि तीक्ष्ण (ऊँचे तारत्व की) प्रतीत होती हैं। यदि श्रोता ध्वनि-स्त्रोत से दूर जा रहा है, तो वह 1 सेकण्ड में केवल n=\frac{v_{0}}{\lambda } तरंगें प्राप्त करेगा। इस दशा में ध्वनि की आभासी आवृत्ति
n'=n-\frac{v_{0}}{\lambda }=n-\frac{v_{0}}{v/n}
अथवा n'=n\left (1-\frac{v_{0}}{v} \right )
n'=n\left (\frac{v+v_{0}}{v} \right )—————(4)
चुकी \frac{v-v_{0}}{v}<1 अतः n’ < n
अर्थात् आभासी आवृत्ति, वास्तविक आवृत्ति से कम है। अतः इस दशा में श्रोता को स्रोत की ध्वनि मोटी (नीचे तारत्व की) प्रतीत होती है।
ध्वनि-स्रोत तथा श्रोता दोनों गतिमान हैं (Both, the Sound source and Observer are Moving) :

माना कि ध्वनि-स्रोत S तथा श्रोता O दोनों ही क्रमशः vs तथा vo वेगों से ध्वनि की दिशा में चल रहे हैं (चित्र 3 ) । माना कि यदि केवल ध्वनि-स्रोत ही चल रहा होता, तब श्रोता द्वारा सुनी जाने वाली आभासी आवृत्ति n1 होती। तब समीकरण (1) के के अनुसार,
n_{1}=n\left (\frac{v}{v-v_{s}} \right )परन्तु चूँकि श्रोता भी स्रोत से दूर जा रहा है, अतः आभासी आवृत्ति n1 से बदलकर n’ हो जायेगी। समीकरण (4) के अनुसार, n'=n_{1}\left (\frac{v-v_{o}}{v} \right )
उपरोक्त समीकरण से n1 का मान रखने पर, n'=n\left (\frac{v-v_{o}}{v-v_{s}} \right ) ———-(5)
यदि स्त्रोत अथवा श्रोता में से किसी के चलने की दिशा ध्वनि की दिशा के विपरीत हो, तो समीकरण (5) में उसके वेग vs अथवा vo बदल जायेगा।
व्यापक स्थिति (General State) : माना कि ध्वनि-स्रोत तथा श्रोता दोनों ही ध्वनि की दिशा में नहीं चल रहे हैं तथा श्रोता के वेग व ध्वनि के वेग की दिशा के बीच कोण α है तथा ध्वनि-स्रोत के वेग व ध्वनि के वेग की दिशा के बीच कोण β है। तब श्रोता द्वारा सुनी जाने वाली आभासी आवृत्ति, n'=n\left (\frac{v-v_{o}\cos \alpha }{v-v_{s}\cos \beta } \right )
वायु के चलने का डॉप्लर प्रभाव (Doppler Effect of Wind in Hindi)
यदि वायु भी w वेग से ध्वनि तरंगों की दिशा में चल रही हो, तो उसका वेग ध्वनि के वेग में जुड़ जाता है। अतः इस दशा में आभासी आवृत्ति,
n'=n\left (\frac{v+w-v_{o}}{v+w-v_{s}} \right ) ——————–(6)
यदि स्रोत व श्रोता दोनों स्थिर हों अर्थात् vs= vo = 0, तो सूत्र (6) के अनुसार n’ = n. इसी प्रकार यदि स्रोत व श्रोता दोनों एक ही दिशा में समान चाल से चल रहे हों अर्थात् vs= vo तब भी n’ = n. अतः स्पष्ट है कि यदि स्रोत तथा श्रोता में सापेक्ष गति न हो, तो वायु के चलने से स्रोत की आवृत्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
डॉप्लर प्रभाव के अनुप्रयोग (Applications of Doppler Effect in Hindi):
डॉप्लर प्रभाव का उपयोग वायु में उड़ते विमान के वेग का अनुमान लगाने में किया जाता है। रेडार स्टेशन से वायु में उड़ते विमान की ओर रेडार तरंगें भेजी जाती हैं तथा विमान से परावर्तित होकर लौटने वाली तरंगें स्टेशन पर प्राप्त की जाती हैं। यदि विमान रेडार स्टेशन की ओर आ रहा होता है, तो विमान से परावर्तित रेडार तरंगों की आवृत्ति बढ़ जाती है और यदि वह स्टेशन से दूर जा रहा है, तो परावर्तित तरंगों की आवृत्ति घट जाती है।
स्टेशन से विमान की ओर भेजी गई तथा विमान से स्टेशन पर प्राप्त की गई तरंगों की आवृत्तियों के अन्तर से विमान के वेग की गणना की जा सकती है। ठीक इसी प्रकार जल के भीतर चलती पनडुब्बी का वेग ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार की गणनाओं का युद्ध के दिनों में बहुत महत्त्व होता है।
प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव (Doppler Effect in Light) : डॉप्लर विस्थापन (Doppler’s Shift)
डॉप्लर प्रभाव प्रकाश तरंगों में बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि कोई प्रकाश-स्त्रोत किसी प्रेक्षक की ओर आ रहा है, तो प्रकाश की आभासी आवृत्ति बढ़ जाती है (अर्थात् तरंगदैर्घ्य घट जाती है)। अतः इसकी स्पेक्ट्रमी रेखाएँ स्पेक्ट्रम के बैंगनी भाग की ओर को विस्थापित हो जाती हैं। इसके विपरीत, यदि प्रकाश स्रोत प्रेक्षक से दूर जा रहा है, तो स्पेक्ट्रमी रेखाएँ स्पेक्ट्रम के लाल भाग की ओर को विस्थापित हो जाती हैं। प्रकाश स्रोत तथा प्रेक्षक की सापेक्ष गति के कारण, प्रकाश की आवृत्ति (अथवा तरंगदैर्घ्य) में प्रेक्षित आभासी परिवर्तन को ‘प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव’ कहते हैं।
ध्वनि तथा प्रकाश के डॉप्लर प्रभावों में एक मुख्य अन्तर है। ध्वनि में डॉप्लर प्रभाव केवल श्रोता तथा ध्वनि-स्रोत के बीच सापेक्ष गति पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि स्रोत तथा श्रोता में कौन गतिमान है। उदाहरण के लिये, यदि स्रोत स्थिर हो तथा श्रोता स्रोत की ओर आ रहा हो, तब डॉप्लर प्रभाव (आवृत्ति परिवर्तन) उस डॉप्लर प्रभाव से भिन्न होगा जबकि श्रोता स्थिर हो तथा स्त्रोत उसी चाल से श्रोता की ओर आ रहा हो।
इसके विपरीत, प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव प्रकाश स्रोत तथा प्रेक्षक की केवल सापेक्ष गति पर निर्भर करता है, इस बात पर नहीं कि दोनों में से कौन चल रहा है। (इसका कारण आइन्सटीन के सापेक्षिकता के सिद्धान्त से समझाया जा सकता है।)
माना कि किसी प्रकाश स्रोत से उत्सर्जित प्रकाश की आवृत्ति v है। सापेक्षिकता के सिद्धान्त से यह सिद्ध किया गया है कि यदि प्रकाश-स्रोत अथवा प्रेक्षक की गति के कारण उनके बीच दूरी घट रही है, तब स्वोत की आभासी आवृत्ति, v'=v\sqrt{\frac{1+(v/c)}{1-(v/c)}} ——————–(1)
जहाँ v प्रकाश स्रोत अथवा प्रेक्षक की चाल है तथा c प्रकाश की चाल है। इस प्रकार, इस दशा में प्रेक्षक को प्रकाश की आवृत्ति बढ़ी हुई प्रतीत होगी अर्थात् प्रकाश की स्पेक्ट्रम रेखाएँ स्पेक्ट्रम के बैगनी भाग की ओर को विस्थापित हो जायेंगी। इसे ‘डॉप्लर विस्थापन’ कहते हैं।
तरंगदैर्ध्य विस्थापन (अथवा डॉप्लर विस्थापन) ज्ञात करने के लिये, माना कि स्रोत के प्रकाश की वास्तविक तरंगदैर्घ्य λ तथा आभासी तरंगदैर्ध्य λ’ है तब,
v=\frac{c}{\lambda } तथा v'=\frac{c}{\lambda '}
v व v’ के ये मान समीकरण (1) में रखने पर,
v'=v\sqrt{\frac{1+(v/c)}{1-(v/c)}}
\frac{c}{\lambda '}=\frac{c}{\lambda }\sqrt{\frac{1+(v/c)}{1-(v/c)}}
\frac{\lambda }{\lambda '}=\sqrt{\frac{1+(v/c)}{1-(v/c)}}
\frac{\lambda '}{\lambda }=\sqrt{\frac{1-(v/c)}{1+(v/c)}}=\left ( 1-\frac{v}{c} \right )^{1/2}\left ( 1+\frac{v}{c} \right )^{1/2}
\frac{\lambda '}{\lambda }=\left ( 1-\frac{v}{c} \right )^{1/2}\left ( 1+\frac{v}{c} \right )^{1/2}=\left ( 1-\frac{1v}{2c}+\cdots \right )\left ( 1+\frac{1v}{2c}+\cdots \right )
साधारणतः प्रकाश-स्त्रोत अथवा प्रेक्षक की चाल प्रकाश की चाल की तुलना में बहुत कम होती हैं, अतः v/c के उच्च घात वाले पद छोड़े जा सकते है। अतः
\frac{\lambda '}{\lambda }=\left ( 1-\frac{1v}{2c} \right )\left ( 1+\frac{1v}{2c} \right )=1-\frac{v}{c}
\frac{\lambda '}{\lambda }=1-\frac{v}{c}
अथवा 1-\frac{\lambda '}{\lambda }=\frac{v}{c}
अथवा \frac{\lambda -\lambda '}{\lambda }=\frac{v}{c}
\therefore \lambda -\lambda '=\Delta \lambda (डॉप्लर विस्थापन) अतः
\mathbf{{\color{Red} \Delta \lambda=\frac{v}{c}}}
यदि प्रकाश स्रोत अथवा प्रेक्षक की गति के कारण उनके बीच की दूरी बढ़ रही है, तब स्रोत की आभासी आवृत्ति, v'=v\sqrt{\frac{1-(v/c)}{1+(v/c)}}
अतः इस दशा में प्रेक्षक को प्रकाश की आवृत्ति घटी हुई प्रतीत होगी अर्थात् प्रकाश की स्पेक्ट्रमी रेखाएँ स्पेक्ट्रम के लाल भाग की ओर विस्थापित हो जायेंगी। डॉप्लर विस्थापन के रूप में पुनः \mathbf{{\color{Red} \Delta \lambda=\frac{v}{c}}}
प्रकाश के डॉप्लर प्रभाव का अनुप्रयोग (Application of Doppler Effect in Light):
प्रकाश के डॉप्लर प्रभाव से तारों तथा गैलेक्सियों की गति का अनुमान लगाया जाता है। तारों से आने वाले प्रकाश के स्पेक्ट्रम में हाइड्रोजन, हीलियम, सोडियम, इत्यादि तत्त्वों की स्पेक्ट्रमी रेखाएँ पायी जाती हैं। यदि कोई तारा पृथ्वी पर स्थित प्रेक्षक से दूर जा रहा हो अथवा प्रेक्षक की ओर आ रहा हो, तो इसके प्रकाश की स्पेक्ट्रमी रेखाएँ स्पेक्ट्रम के दीर्घ तरंगदैर्घ्य (लाल) अथवा लघु तरंगदैर्घ्य (बैंगनी) भाग की ओर को विस्थापित हो जायेंगी।
इस घटना से तारे का वेग ज्ञात किया जा सकता है। इसके लिये, तारे के प्रकाश के स्पेक्ट्रम का फोटो ले लेते हैं। इन स्पेक्ट्रमी रेखाओं की, प्रयोगशाला में किसी तत्त्व के स्पेक्ट्रम में प्राप्त उन्हीं रेखाओं से तुलना करते हैं। यदि तारे की स्पेक्ट्रमी रेखाएँ स्पेक्ट्रम के दीर्घ तरंगदैर्घ्य (लाल) भाग की ओर विस्थापित हैं, तो तारा पृथ्वी से दूर जा रहा है और यदि वे लघु तरंगदैर्ध्य (बैंगनी) भाग की ओर विस्थापित है, तो तारा पृथ्वी की ओर आ रहा है। यदि यह विस्थापन, तरंगदैर्घ्य के पद में, Δλ है तब डॉप्लर विस्थापन \mathbf{{\color{Red} \Delta \lambda=\frac{v}{c}}}
अतः Δλ मापकर, तारे के वेग v की गणना कर सकते है।
FAQs about the Doppler Effect in Hindi

डॉपलर प्रभाव की खोज किसने की थी?
डॉपलर प्रभाव का नाम ऑस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी क्रिश्चियन डॉप्लर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 1842 में इस घटना का वर्णन किया था।
डॉपलर प्रभाव किस कारण होता है?
डॉप्लर प्रभाव तरंगों के स्रोत और पर्यवेक्षक के बीच सापेक्ष गति के कारण होता है। जब स्रोत और प्रेक्षक एक-दूसरे की ओर गति कर रहे होते हैं, तो तरंगें संकुचित हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च आवृत्ति और कम तरंगदैर्घ्य होता है। जब वे एक दूसरे से दूर जा रहे होते हैं, तो तरंगें खिंचती हैं, जिसके परिणामस्वरूप कम आवृत्ति और लंबी तरंग दैर्ध्य होती है।
क्या डॉप्लर प्रभाव केवल ध्वनि तरंगों पर लागू होता है?
नहीं, डॉपलर प्रभाव प्रकाश तरंगों और जल तरंगों सहित किसी भी प्रकार की तरंग पर लागू होता है।
दवा में डोप्लर प्रभाव कैसे प्रयोग किया जाता है?
शरीर में रक्त प्रवाह को मापने के लिए डॉपलर प्रभाव का उपयोग चिकित्सा इमेजिंग में किया जाता है, जैसे कि अल्ट्रासाउंड। चलती रक्त कोशिकाओं से परावर्तित अल्ट्रासाउंड तरंगों की आवृत्ति बदलाव को मापकर, डॉक्टर रक्त के थक्कों, धमनीविस्फार और हृदय रोग जैसी स्थितियों का निदान कर सकते हैं।
यातायात प्रवाह मापन में डॉपलर प्रभाव का उपयोग कैसे किया जाता है?
ट्रैफ़िक की गति और मात्रा की गणना करने के लिए डॉपलर प्रभाव का उपयोग ट्रैफ़िक प्रवाह माप में किया जाता है। इस जानकारी का उपयोग यातायात प्रवाह को अनुकूलित करने और भीड़भाड़ को कम करने के लिए किया जाता है।
Conclusion: The Importance of the Doppler Effect in Hindi
डॉपलर प्रभाव भौतिकी में एक मौलिक अवधारणा है जिसका हमारे दैनिक जीवन में कई अनुप्रयोग हैं। यह समझकर कि यह ध्वनि और प्रकाश तरंगों को कैसे प्रभावित करता है, हम अपने आसपास की दुनिया की जटिलता की सराहना कर सकते हैं और इसके बारे में हमारी धारणा कैसे गति से प्रभावित होती है। मेडिकल इमेजिंग से लेकर ट्रैफिक फ्लो मापन तक, डॉपलर प्रभाव कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और ब्रह्मांड की हमारी समझ पर इसका प्रभाव अथाह है।
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