हाइगेंस का द्वितीयक तरंग सिद्धांत | अपवर्तन तथा परिवर्तन की व्याख्या

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आज किस लेख में हम देखेंगे हाइगेंस का द्वितीय तरंग सिद्धांत और उसके अपवर्तन तथा परिवर्तन की व्याख्या को यह तीनों टॉपिक आज की इस पोस्ट में हम लोग समझेंगे।

यह सारे प्रश्न हालांकि यह तीनों प्रशन हाइगेंस का द्वितीय तरंग सिद्धांत और हाइगेंस के आधार पर अपवर्तन की व्याख्या और हाइगेंस के आधार पर परिवर्तन की व्याख्या यह तीनों प्रशन में से कोई ना कोई एक प्रश्न आपके बोर्ड परीक्षा में आता है।

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हाइगेंस के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत

हाइगेंस के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत कुछ इस प्रकार है।

हाइगेंस के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत
हाइगेंस के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत:

जब किसी माध्यम में कोई तरंग उत्पन्न की जाती है तो माध्यम के सभी कण कंपन करने लगते हैं। एक ही कला में कंपन करने वाले कणों का बिंदु पथ तरंगाग्र कहलाता है।

प्रथम सिद्धांत

तरंगाग्र पर स्थिर प्रत्येक कण एक नए तरंग स्रोत की भांति व्यवहार करता है जिससे सभी दिशाओं में नई गोलियां तरंगे निकलती है। इन तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएं कहते हैं। यह तरंगिकाएं मूल तरंग की चाल से आगे बढ़ती है।

द्वतीय सिद्धांत

किसी क्षण सभी द्वितीयक तरंगिकाऔ को स्पर्श करता हुआ खिची गया पृष्ठ उस क्षण तरंगाग्र की नई स्थिति व्यक्त करता है। चित्र में A, B, नया तरंगाग्र है। हाइगेंस के अनुसार, इसका पीछे वाला भाग की स्वीकार नही करता है।

तृतीय सिद्धांत

Video Lecture: हाइगेंस का द्वितीयक तरंग सिद्धांत

अगर आप चित्र को समझना चाहते है और इस टॉपिक को चित्र की माध्यम से पढ़ कर समझना चाहते है तो ये विडियो आपके लिए है।

विडियो के माध्यम से समझे – Higens Ka Dvitiyak Tarang Siddhant

हाइगेन्स का तरंग सिद्धांत से परावर्तन की व्याख्या

हाइगेन्स का तरंग सिद्धांत से परावर्तन की व्याख्या
हाइगेन्स का तरंग सिद्धांत से परावर्तन की व्याख्या

रचना: माना की ZZ’ एक परावर्तक पृष्ठ है जिस पर समतल तरंगाग्र t=0 समय पर PQ तिरछा आपतित होता है। जो पृष्ठ ZZ’ को बिंदु A पर स्पर्श करता है। माना तरंगाग्र की चाल v है। तब तरंगाग्र के बिंदु Q को पृष्ठ ZZ’ के बिंदु A’ तक पहुचने में t समय लगता है।

जैसे-जैसे तरंगाग्र PQ आगे बढ़ता है, वह पृष्ठ के A व A’ के बिंदु से टकराता है। अतः हाइगेन्स के अनुसार, इन बिन्दुओं से द्वितीयक गोलीय तरंगिकाए निकलने लगती है। जोकि चाल v से माध्यम में फैलती है।

सबसे पहले बिंदु A से द्वितीयक तरंगिकाए निकलती है। जितने समय (t) में तरंगाग्र बिंदु B से बिंदु A’ तक पहुचती है उतने ही समय में द्वितीयक तरंगिकाए बिंदु A से बिंदु B’ पर पहुच जाते है। स्पष्ट है की BA’=AB’=vt

BA’=AB’ ————माना समी० (1)

बिंदु A को केंद्र मानकर BA’ त्रिज्या का एक गोलीय चाप AB’ खीचते है। बिंदु A’ से इस चाप पर स्पर्श रेखा A’B’ खीचते है। RS तरंगाग्र PQ का परावर्तित तरंगाग्र होगा।

समकोण \Delta ABA' तथा \Delta AB'A से
\angle AB'A'=\angle A'BA=90^{\circ}
BA'=A'B- समी० 1 से
AA'=AA'
\Delta ABA'\cong \Delta AB'A'

अतः \angle ABA'=\angle AB'A'
\angle i=\angle r
आपतन कोण = परावर्तन कोण

आपतित किर, परावर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर अभिलम्ब तीनो एक ही ताल में है। यही परावर्तन का प्रथम या पहला नियम है।

हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओ के सिद्धान्त पर तरंगों के अपवर्तन की व्याख्या

हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओ के सिद्धान्त पर तरंगों के अपवर्तन की व्याख्या

रचना: माना ZZ’ एक अपवर्तन पृष्ठ है जो दो माध्यमों का सीमा पृष्ठ है। जिसमें तरंग की चाल क्रमशः v1 व v2 है। माना कि पहले माध्यम में v1 चाल से एक समतल तरंगाग्र तिरछा आपतित होता है तथा t=0 समय पर यह अपवर्तन पृष्ठ ZZ’ को बिंदु A पर स्पर्श करता है तथा तरंगाग्र के बिंदु B को सीमा पृष्ठ के बिंदु A’ तक पहुंचने में t समय लगता है।

तब BA'=v_{1}t

जैसे-जैसे तरंगाग्र आगे बढ़ता है, वह सीमा पृष्ठ के बिंदु A व A’ से टकराता है। अतः हाइगेंस के अनुसार, इन बिंदुओं से द्वितीयक गोलीय तरंगिकाएं निकलने लगते हैं।

जो दूसरे माध्यम में v2 चाल से चलने लगती है। सबसे पहले बिंदु A से द्वितीयक तरंगिकाएं निकलती है जो t समय में दूसरे माध्यम में AB'(=v2t) दूरी तय कर लेती है। ठीक इसी समय t में तरंगाग्र बिंदु B से पहले माध्यम में BA'(=v1t) दूरी तय कर लेता है। जहां से अब द्वितीयक तरंगिकाएं निकलना शुरू करती है।

इस प्रकार,
AB'=v_{2}t
BA'=v_{1}t

बिंदु A को केंद्र मानकर AB’ त्रिज्या का एक चाप खींचते हैं तथा A’ से इस चाप पर स्पर्श रेखा A’B’ खींच देते हैं। जैसे-जैसे आपतित तरंगाग्र AB आगे बढ़ेगा, A व A’ के बीच सभी बिंदुओं से एक के बाद एक चलने वाली द्वितीयक तरंगिकाएं एक साथ A’B’ को स्पर्श करेगी; अर्थात A’B’ सभी द्वितीयक तरंगिकाएं को स्पर्श करेगा। अतः A’B’ अपवर्तित तरंगाग्र होगा।

माना कि आपतित तरंगाग्र AB तथा अपवर्तित तरंगाग्र A’B’ अपवर्तक तल ZZ’ के साथ क्रमशः \angle i तथा \angle r बनाते है। अब समकोण \Delta ABA' में,
\sin i=\frac{BA'}{AA'}=\frac{v_{1}t}{AA'} ——– (1)

इसी प्रकार, समकोण \Delta AB'A' में,
\sin r=\frac{AB'}{AA'}=\frac{v_{2}t}{AA'} ——– (2)

समी० 1 को समी० 2 से भाग देने पर,

\frac{\sin i}{\sin r}=\frac{v_{1}t}{AA'}\times \frac{AA'}{v_{2}t} {\color{Red} \mathbf{\frac{\sin i}{\sin r}=\frac{v_{1}}{v_{2}}}}

यही अपवर्तन का प्रथम नियम है। इसको स्नेल का नियम भी कहते है।

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Raju Chaurasia
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