भौतिक जगत – Physical World Class 11 Notes in Hindi

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इस लेख में हम भौतिक जगत (Physical World) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे. ये आपके Physical World Class 11 Notes in Hindi के सबसे पहला चैप्टर है. इस चैप्टर का हर एक टॉपिक को देखंगे जो भी इस चैप्टर में होगा.

भौतिकी विज्ञान की एक आवश्यक शाखा है जो प्रकृति के मूलभूत नियमों के अध्ययन और हमारे दैनिक जीवन में उनके अनुप्रयोग से संबंधित है। कक्षा 11 के भौतिक विज्ञान के छात्रों के लिए, भौतिक जगत (Physical World) को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भौतिकी में अधिक उन्नत अवधारणाओं की नींव रखता है। इस लेख में, हम भौतिक विज्ञान की बुनियादी अवधारणाओं, सिद्धांतों और अनुप्रयोगों को शामिल करेंगे जो कक्षा 11 के छात्रों को समझने के लिए आवश्यक हैं।

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भौतिकी क्या है? What is Physics in Hindi? – भौतिक जगत

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। विज्ञान अर्थात् Science शब्द लेटिन शब्द सीन्टिया (scientia) से लिया गया है, जिसका अर्थ है जानना। मानव को जिज्ञासा अपने चारों और की वस्तुओं के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने की है। मानव ने सतत् प्रेक्षणों तथा प्रायोगिक अध्ययन द्वारा काफी जानकारी प्राप्त कर ली है।

मानव द्वारा प्राकृतिक परिघटनाओं को जितना संभव हो विस्तृत एवं गहनता से समझने के लिये किये गये अच्छी तरह से संगठित ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैं। हम जो कुछ भी अपने परिवेश में देखते है, उसी के आधार पर खोज करना, प्रयोग करना या भविष्यवाणी करना ही विज्ञान है। विज्ञान सदैव गतिशील है विज्ञान में कोई भी सिद्धान्त अन्तिम नहीं है।

जहाँ तक भौतिकी का प्रश्न है भौतिकों को अंग्रेजी में Physics कहते हैं जो ग्रीक भाषा के शब्द फ्यूसिस (fusis) से लिया गया है, जिसका अर्थ हैं प्रकृति (Nature)। प्रारम्भ में भौतिकी(Physics) को प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) भी कहा जाता था.

अतः “भौतिकी वह विज्ञान है, जिसके अन्तर्गत प्रकृति अथवा प्राकृतिक घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।” दैनिक जीवन में हम अनेक घटनाएं देखते हैं, जैसे सूर्य का नियमित उदय तथा अस्त होना, ऋतुओं का बदलना, बादलों का बनना तथा वर्षा का होना, आंधी का चलना, कोयला जलाने से ऊष्मा का उत्पन्न होना, चन्द्रमा की गति, चन्द्र तथा सूर्य ग्रहण, साबुन के बुलबुलों के चमकदार रंग आदि। मनुष्य प्रकृति में होने वाली प्रत्येक घटना के विषय में सदैव जिज्ञासु (curious) रहा है।

इसके फलस्वरूप प्राकृतिक घटनाओं की अनेक व्याख्याएँ दी गई हैं। आज प्रकृति की अनेक जटिलताएँ सरल नियमों के अनुसार होती हुई प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए, सूर्य ग्रहण होने का सरल नियम यह है, कि जब चन्द्रमा अपनी कक्षा में परिक्रमण करते हुए पृथ्वी व सूर्य के बीच में आ जाये तथा तीनों एक सरल रेखा में स्थित हों, तो सूर्य ग्रहण दिखाई देता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय दिन में भी अन्धकार छा जाता है।

द्रव्य (Matter) : प्रत्येक वह वस्तु जिसमें द्रव्यमान होता है, जो स्थान घेरती है तथा जिसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अनुभव किया जा सकता है, द्रव्य कहलाती है। उदाहरण के लिए, पत्थर, लोहा, सोना, वायु, रुई, जल, अणु, परमाणु, इलेक्ट्रॉन आदि द्रव्य हैं।

ऊर्जा (Energy): किसी वस्तु । के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊष्मा, प्रकाश, ध्वनि, गतिज ऊर्जा, वैद्युत ऊर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा आदि ऊर्जा के विभिन्न स्वरूप है।

पहले यह समझा जाता था कि द्रव्य तथा ऊर्जा परस्पर अनिर्भर ( independent) हैं तथा इनमें परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है, परन्तु आइन्सटीन (Einstein) ने यह प्रतिपादित किया कि द्रव्य तथा ऊर्जा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिन्हें परस्पर रूपान्तरित (transform) किया जा सकता है अर्थात् द्रव्यमान को ऊर्जा में तथा ऊर्जा को द्रव्यमान में बदला जा सकता है। इनके पारस्परिक सम्बन्ध को निम्नलिखित गणितीय समीकरण से दर्शाया जा सकता है।

ऊर्जा = द्रव्यमान x (निर्वात में प्रकाश की चाल )2 अर्थात् संकेतों में E = mc2

अतः भौतिकी की नवीनतम परिभाषा निम्न प्रकार है,

“भौतिकी विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें ऊर्जा, द्रव्यमान, उनकी अन्योन्य क्रियाओं तथा रूपान्तरण का अध्ययन किया जाता है।”

भौतिकी का कार्य-क्षेत्र तथा रोमांच (Scope and Excitement of Physics)

भौतिकी का कार्य क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। मूलरूप से इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है :

  • स्थूल (Macroscopic)
  • सूक्ष्म (Microscopic )

1). भौतिकी के स्थूल प्रभाव के अन्तर्गत पार्थिव तथा खगोलीय स्तर की परिघटनाएँ सम्मिलित हैं जबकि सूक्ष्म भौतिकी में परमाणविक, आणविक तथा नाभिकीय परिघटनाएँ सम्मिलित हैं। स्थूल परिघटनाओं की व्याख्या के लिए चिरसम्मत् यान्त्रिकी (classical mechanics) के सिद्धान्तों का उपयोग किया जाता है जबकि सूक्ष्म परिघटनाओं के लिए क्वाण्टम यान्त्रिकी (quantum mechanics) का उपयोग किया जाता है। चिरसम्मत् यान्त्रिकी के उपविषय (शाखायें) निम्नलिखित है:

  • यान्त्रिकी (Mechanics) : इसमें द्रव्य (ठोस, द्रव तथा गैस) के नियमों का अध्ययन किया जाता है। यान्त्रिकी न्यूटन के गति के नियमों निम्नलिखित हैं : तथा गुरुत्वाकर्षण के नियम पर आधारित है। इसमें रॉकेट नोदन, पिण्डों की साम्यावस्था एवं उनकी गति का अध्ययन किया जाता है। इसी शाखा में द्रव्यमान, जड़त्व, बल, ऊर्जा, शक्ति, बल-आघूर्ण आदि भौतिकी राशियों की अभिधारणा की व्याख्या की जाती है।
  • ऊष्मागतिकी (Thermodynamics) : इस शाखा के निकायों के ऊष्मीय सन्तुलन के नियमों ऊष्मा प्रवाह की दिशा, ऊष्मा का कार्य में रूपान्तरण एवं ऊष्मा स्थानान्तरण के कारण निकाय की आन्तरिक ऊर्जा, ताप एवं ऐन्ट्रॉपी (Entropy) आदि में परिवर्तन का अध्ययन किया जाता है। ऊष्मा इंजन की खोज ऊष्मा के कार्य में रूपान्तरण का परिणाम है। प्रशीतक (Refrigerator) की कार्यविधि की व्याख्या भी ऊष्मागतिकी(Thermodynamics) के अन्तर्गत ही की जाती है।
  • प्रकाशिकी (Optics) : इस शाखा में प्रकाश पर आधारित परिघटनाओं जैसे परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन पर विचार किया जाता है। व्यतिकरण के साथ ही साथ दूरदर्शी व सूक्ष्मदर्शी की कार्यविधि, विभिन्न वस्तुओं एवं पतली फिल्मों (जैसे साबुन के बुलबुलों) के रंगों का कारण, इन्द्रधनुष का बनना आदि विषयों का रोचक अध्ययन भी इसी शाखा में किया जाता है।
  • दोलन तथा तरंगे (Oscillations and Waves) : इस शाखा के अन्तर्गत हम विभिन्न वस्तुओं के कम्पनों; कम्पित वस्तु द्वारा उत्पन्न विक्षोभ (disturbance) के संचरण आदि का अध्ययन करते हैं। इसी से हमें यह पता चलता है कि हमारी आवाज किस प्रकार आगे बढ़ती है एवं भाषण (speech) तथा संगीत (music) के क्या अभिलक्षण हैं?
  • वैद्युतगतिकी (Electrodynamics) : इस शाखा के अन्तर्गत आवेशित तथा चुम्बकित वस्तुओं से सम्बन्धित परिघटनाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके मूल नियमों का प्रतिपादन गौस, ऐम्पियर तथा फैराडे आदि ने किया। इन नियमों के संयोग को मैक्सवेल ने चार समीकरणों के रूप में किया तथा इन्हीं समीकरणों के आधार पर विद्युतचुम्बकीय तरंगों के संचरण की व्याख्या की। धारावाही चालक की चुम्बकीय क्षेत्र में गति, वैद्युत धारा की उत्पत्ति, आयनमण्डल में रेडियो तरंगों का संचरण आदि का अध्ययन वैद्युतगतिकी में ही किया जाता है ।

2). भौतिकी के सूक्ष्म प्रभाव के अन्तर्गत परमाणुओं एवं नाभिकों से सम्बन्धित परिघटनाओं की व्याख्या की जाती है। इन परिघटनाओं की व्याख्या चिरसम्मत् भौतिकी के नियमों से नहीं की जा सकती, इसके लिए आधुनिक क्वाण्टम यान्त्रिकी का प्रयोग किया जाता है। इस शाखा में द्रव्य के संघटन एवं संरचना, मूल कणों (जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि) के अभिलक्षणों एवं इनकी पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

वास्तव में भौतिकी का अध्ययन उत्तेजक एवं रोमांचकारी है जो सभी विज्ञान की शाखाओं का आधार (basis) है। भौतिक विज्ञान में एक ओर तो अभिलक्षणों एवं इनकी पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। अनेक सूक्ष्म कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, परमाणु, अणु आदि का अध्ययन है जबकि दूसरी ओर विशाल आकाशीय पिण्डों जैसे ग्रह, सूर्य, गैलेक्सी* (galaxy) आदि का अध्ययन है। भौतिक विज्ञान सूक्ष्म परमाणु से विशालकाय ब्रह्माण्ड में फैली प्राकृतिक घटनाओं की व्याख्या कुछ मूल तथ्यों के आधार पर करता हैं। इसके अतिरिक्त यह प्रकृति में छिपी आभासी जटिलता में सममिति (symmetry) तथा सरलता (simplicity) प्रदर्शित करता है। इस प्रकार भौतिकी, विज्ञान की सर्वाधिक उत्तेजक तथा चुनौतीपूर्ण (challanging) शाखा है।

अतः यह स्पष्ट है कि विज्ञान की इस शाखा में ज्ञानार्जन एवं इसके विस्तार की कोई सीमा नहीं है। कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता है कि वह सम्पूर्ण भौतिकी का ज्ञाता है। आज के युग में कोई भी व्यक्ति भौतिकी से अलग नहीं रह सकता। यह एक सरल तथा मनोरंजक विषय है। भौतिकी को समझने के लिए छात्रों को स्वयं प्रयोग करने चाहिए। प्रयोगों से प्राप्त अनुभव उत्तेजक तथा ज्ञानवर्द्धक होते हैं तथा वे भौतिकी के कुछ नियमों के विषय में जानकारी देते हैं।

उदाहरण स्वरूप सेब के जमीन पर गिरने तथा चन्द्रमा की गति से न्यूटन ने अपने प्रसिद्ध गुरुत्वाकर्षण के नियम का प्रतिपादन किया । पतीली के ढक्कन के ऊपर-नीचे कूदने की घटना ने भाप इंजन (steam engine) के आविष्कार को आधार प्रदान किया। चर्च में लटकते लैम्प के दोलनों ने गैलीलियो को समय मापने की विधि प्रदान की। बाथ टब (bath-tub) से जल के बाहर निकलने की घटना ने आर्किमीडीज को प्रसिद्ध तैरने के नियम (law of floatation) की खोज की प्रेरणा प्रदान की।

विद्युत वाहक बल के किसी बाह्य स्रोत की अनुपस्थिति में गतिमान चुम्बक के कारण निकटवर्ती कुण्डली में धारा की उत्पत्ति होने ही घटना ने फैराडे को विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (electromagnetic induction) के नियम देने को प्रेरित किया। इन नियमों के कारण ही वैद्युत जेनरेटर, वैद्युत मोटर आदि की खोज हुई। आजकल सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण आदि घटनाओं का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण किया जाता है तथा इसके प्रेक्षणों को रिकॉर्ड करके बाद में अध्ययन किया जाता है। इन प्रेक्षणों से प्रकृति के रहस्यों को नये नियम प्रतिपादित करके समझाया जाता है। रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, सिनेमा, कम्प्यूटर, सभी इलेक्ट्रॉनिक यन्त्र, मोटर, जेनरेटर, कैलकुलेटर, मोटर कार आदि सभी भौतिकी की देन हैं।

इस प्रकार भौतिकी विज्ञान में अजीवित विश्व की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है जो कि जीवित प्राणियों के लिए लाभदायक हैं।

भौतिकी-प्रौद्योगिकी एवं समाज (Physics -Technology and Society)

भौतिकी, विज्ञान की सभी शाखाओं का मित्र है तथा इसका विज्ञान की सभी शाखाओं के विकास तथा समाज के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

भौतिको एवं प्रौद्योगिकी : यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कभी प्रौद्योगिकी नवीन भौतिकी को जन्म देती है तो कभी भौतिकी नवीन प्रौद्योगिकों के उदय का कारण बनती है भौतिक विज्ञान के प्रायोगिक पक्ष ने शिल्प प्रौद्योगिकों (technology) के विकास को महत्त्वपूर्ण आयाम दिया है। मूल द्वारा कामा के कार्य में रूपान्तरण तथा फैराडे द्वारा विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की खोजों ने केवल समाज को ही लाभान्वित नहीं किया बल्कि प्रौद्योगिकी का आधार भी रखा। भौतिकी के प्रौद्योगिकों पर प्रभाव के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है।

  1. लोवर निकाय (lever system) के अध्ययन से अनेक मशीनों के डिजाइन तैयार किये गये।
  2. तरल- बहाव (liquid Bow) के अध्ययन से वायुयान की खोज हुई।
  3. ऊष्मा के कार्य में रूपान्तरण की खोज से ऊष्णा इंजन का आविष्कार हुआ।
  4. अर्द्धचालको सन्धि डायोड तथा ट्रांजिस्टर के अध्ययन से रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर तथा रोबोट के निर्माण सम्भव हुए।
  5. नाभिकीय विखण्डन (nuclear fission) के अध्ययन से नाभिकीय भट्टी तथा परमाणु बम के निर्माण सम्भव
  6. नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) के अध्ययन से हाइड्रोजन बम का निर्माण सम्भव हुआ।
  7. x किरणों के अध्ययन से x- किरण मशीन का निर्माण सम्भव हुआ, जिसको चिकित्सा विज्ञान में अत्यधिक महत्ता है।।
  8. लेजर के अध्ययन से कैंसर के उपचार तथा गुर्दे व गाल ब्लेडर (gall bladder) से पथरी (stone) निकालने की युक्तियों का विकास सम्भव हुआ।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भौतिकी के आधुनिक विकास ने प्रौद्योगिकी में अनेक सुधार किये तथा औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात किया।

भौतिकी एवं समाज : वर्तमान समय में इस सत्य को कोई भी व्यक्ति सहजतः स्वीकार कर लेगा कि आधुनिक सामाजिक व्यवस्था जो कि अपने विकास के चरम पर है में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप भौतिकी का अभूतपूर्व योगदान है। भौतिकी में हो चुके अथवा वर्तमान में चल रहे अनुसन्धान कार्य एवं उससे प्राप्त परिणाम कमोवेश सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक सोच एवं उसकी दिशा एवं दशा को निस्सन्देह प्रभावित करते हैं या यह कहा जाये कि समाज को भौतिक प्रगति में भौतिकी तथा विज्ञान की अन्य दूसरी शाखाओं का किसी-न-किसी तरह से योगदान रहता ही है। अट्ठारहवीं शताब्दी में हुई इंग्लैंड की औद्योगिक क्रान्ति के केन्द्र में जेम्स बाट द्वारा अविष्कृत भाप इंजन ही था।

वर्तमान समय में यातायात तथा दूरसंचार के क्षेत्रों में हुई अभूतपूर्व प्रगति के परिणामस्वरूप विश्व के सुदूर स्थित क्षेत्रों के बीच दरिया अपेक्षाकृत कम हुई है। जिसके फलस्वरूप संसार के अलग-अलग क्षेत्रों से आए लोगों के मिलने से उनके बीच सांस्कृतिक एवं वैचारिक आदान-प्रदान से हर किसी को नई नई बीजे सोखने के उपयुक्त अवसर प्राप्त हुए हैं। अतः इन परिस्थितियों ने लोगों में व्याप्त रूढ़िवादिता तथा संदेह को काफी हद तक कम किया है।

अल्ट्रासाउन्ड, इन्डोस्कॉपी (endoscopy), ई० सी० जी० सी० टी० स्कैनिंग, कलर डॉप्लर और इसी प्रकार अन्य बहुत सारे आविष्कारों ने चिकित्सा विज्ञान (medical science) तथा चिकित्सको को काफी सुविधाएं प्रदान की है। सम्प्रेषण उपग्रहों (communication satellites) की सहायता से आज हम संसार के किसी भी कोने में होने वालों किसी भी घटना को उसी क्षण सजीव (live) देख सकते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (information technology) से लेकर अन्तरिक्ष विज्ञान (space science), रेल आरक्षण बिजली के बिल, इन्टरनेट बैंकिंग एवं अन्य बहुत-से महत्त्वपूर्ण एवं संवेदनशील क्षेत्रों में कम्प्यूटर की उपयोगिता सर्वविदित है।

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कम्प्यूटर आज की प्रगति के लिए प्राण वायु के समान है तथा इस मशीन की मशीनरी (hardware) एवं इसकी मशीनरी संचालन की विधि भौतिकी की ही देन है। जैसा कि विदित है जहाँ स्रोत है वहीं गत भी, जहाँ सुख वहीं दुख, जहाँ विकास वहीं विनाश। इस प्रकार भौतिकी के चमत्कारी अन्वेषण निश्चित रूप से मानवता के सर्वश्रेष्ठ सेवक हैं पर तभी तक जब तक इनका उपयोग मानव कल्याण के लिए हो। इसका दूसरा पक्ष बहुत काला (dark) एवं वीभत्स हैं। इसके दुरुपयोग से विनाशकारी घटनायें भी हुई है। अतः चमत्कारिक अन्वेषणों का सदुपयोग तभी तक सम्भव है जब तक ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करते रहें।

भौतिकी के कुछ अग्रणी वैज्ञानिक (Same Pioneer Physicists)

यदि हम भौतिकी के महान वैज्ञानिकों तथा उनके कार्यों का परिचय न दें, तो भौतिकी का परिचय अपूर्ण रहेगा, निम्न तालिका में उनका संक्षिप्त विवरण है :

क्र०सं०भौतिक विज्ञानीकार्य
1.गैलीलियो (Galileo)जड़त्व का नियम
2.सर आइजक न्यूटन (I. Newton)न्यूटन के गति विषयक नियम, गुरुत्वाकर्षण का नियम
3.डेनियल बरनौली (Daniel Bernoulli)द्रवों के प्रवाह की बरनौली प्रमेय तथा गैसों का गतिक सिद्धान्त
4.रॉबर्ट बॉयल (Robert Boyle)बॉयल का नियम
5.केल्विन (Kelvin)ऊष्मा गतिकी का द्वितीय नियम, परम स्केल
6.एस० कार्नो (S. Carnot)आदर्श ऊष्मा इंजन
7.सी० हाइगेन्स (C. Huygens)प्रकाश का तरंग सिद्धान्त
8.थॉमस यंग (Thomas Young )प्रकाश का व्यतिकरण
9.फ्रेनल (Fresnel)प्रकाश का विवर्तन
10.फैराडे (Faraday)विद्युतचुम्बकीय प्रेरण के नियम
11.जेम्स क्लार्क मैक्सवेल (J. C. Maxwell)प्रकाश का विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त
12.ऐम्पियर (Ampere)वैद्युत धारा तथा चुम्बकत्व
13.आर० ए० मिलीकन (R.A. Millikan)आवेश का क्वाण्टीकरण (इलेक्ट्रॉनिक आवेश ज्ञात करना)
14.जे० जे० टॉमसन (J.J. Thomson)परमाणु का नाभिक मॉडल, तत्त्वों का इलेक्ट्रॉन तथा धन किरणों का e/m निर्धारण
15.रदरफोर्ड (Rutherford)सर्वप्रथम कृत्रिम रूपान्तरण
16.नील बोर (Niel Bohr)हाइड्रोजन का परमाणु मॉडल
17.प्लांक (Planck)विकिरण का क्वाण्टम सिद्धान्त
18.एल्बर्ट आइन्स्टीन (Albert Einstein)प्रकाश वैद्युत प्रभाव तथा सापेक्षिकता का सिद्धान्त
19.रान्जन (Roentgen)X-किरणों की खोज
20.एच० युकावा (H. Yukawa)नाभिकीय बलों की उत्पत्ति
21.बेकुरल (Becquerel)रेडियोऐक्टिवता की खोज
22.डी-ब्रोगली (de-Broglie)पदार्थ कणों की तरंग प्रकृति
23.श्रोडिन्जर (Shrodinger)तरंग यान्त्रिकी का विकास
24.हैजनवर्ग (Heisenberg)अनिश्चितता का सिद्धान्त
25.सी० वी० रमन (C.V Raman)अणुओं द्वारा प्रकीर्णन/रमन प्रभाव
26.हेस्स (Hess)अन्तरिक्ष किरणें
27.एच० जे० भाभा (H.J. Bhabha)अन्तरिक्ष किरण शावर
28.एस० एन० बोस (S.N. Bose)क्वाण्टम सांख्यिकी
29.पी० ए० एम० डिराक (PA.M. Dirac )इलेक्ट्रॉन का आपेक्षिकीय सिद्धान्त तथा क्वाण्टम सांख्यिकी

प्रकृति में मूल बल (Fundamental Forces in Nature)

बल वह कारक है जो किसी वस्तु में गति, गति परिवर्तन या विरूपण उत्पन्न करता है। आजकल यह माना जाता है कि प्रकृति में केवल चार प्रकार के मूल बल हैं तथा अन्य प्रेक्षित बल व्युत्पन्न बल हैं। प्रकृति में मूल बल निम्न हैं :

  • गुरुत्वाकर्षण बल
  • विद्युतचुम्बकीय बल
  • प्रबल नाभिकीय बल
  • क्षीण नाभिकीय बल

गुरुत्वीय बल अभी तक अनिर्धारित कण प्रेविटॉन के विनिमय से उत्पन्न होते हैं।

भौतिक नियमों की प्रकृति (Nature of Physical Laws)

भौतिकी में विश्व के अति अल्प आकार के कणों (जैसे परमाणु, नाभिक) तथा अतिदीर्घ आकार के कणों (जैसे तारे, आकाश गंगा) का अध्ययन करते हैं। इनके अध्ययन की विधियाँ तथा उपकरण भिन्न होते हैं। प्रयोगों तथा प्रेक्षणों के आधार पर तथ्यों की खोज के साथ-साथ उन नियमों को भी खोजने का प्रयास किया जाता है, जो लघु एवं दीर्घ आकार के कण पालन करते हैं।

विभिन्न भौतिक प्रक्रम विभिन्न प्रकार के बलों से नियन्त्रित होते हैं, अतः प्रक्रम में कुछ भौतिक राशियाँ समय के साथ बदलती हैं। कुछ निश्चित शर्तों के अन्तर्गत दिये गये प्रक्रम में कुछ भौतिक राशियाँ समय के साथ नियत रहती हैं। वे राशियाँ जो नियत (सरक्षित) रहती हैं; संरक्षित राशियाँ (conserved quantities) कहलाती है। यदि इसी को शर्त सहित कहें, तो यह कथन संरक्षण नियम (conservation law) कहलाता है। इस प्रकार संरक्षण नियम वह है जो यह प्रदर्शित करे कि कौन-सी भौतिक राशि किस शर्त के अन्तर्गत संरक्षित है। कुछ संरक्षण नियम निम्नलिखित हैं :

ऊर्जा संरक्षण (Conservation of Energy): यदि किसी वस्तु पर कार्य करने वाला बल संरक्षी (conservative) हो, तो निकाय की कुल यांत्रिक ऊर्जा (अर्थात् गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा का योग ) नियत रहती है। यह यांत्रिक ऊर्जा के संरक्षण का नियम है। गुरुत्व के अन्तर्गत किसी पिण्ड का मुक्त पतन इसका उदाहरण है। यदि बल संरक्षी नहीं हैं, तो विश्व की कुल ऊर्जा नियत रहती है। यह ऊर्जा संरक्षण का व्यापक नियम है।

ऊर्जा संरक्षण का व्यापक नियम सभी बलों तथा सभी प्रकार की ऊर्जा रूपान्तरणों के लिए सत्य है।

रेखीय संवेग संरक्षण (Conservation of Linear Momentum): यदि कणों के किसी निकाय पर कार्य करने वाला बाह्य बल शून्य हो, तो निकाय का रेखीय संवेग संरक्षित रहता है। यह रेखीय संवेग संरक्षण का नियम है।

कोणीय संवेग संरक्षण (Conservation of Angular Momentum): यदि कणों के किसी निकाय पर कार्य करने वाला बाह्य बल-आघूर्ण शून्य हो, तो निकाय का कोणीय संवेग संरक्षित रहता है। यह कोणीय संवेग संरक्षण का नियम है।

द्रव्यमान-ऊर्जा संरक्षण (Mass-energy Conservation) : आइन्सटीन के अनुसार, द्रव्यमान तथा ऊर्जा पृथक् पृथक् अस्तित्व वाली भौतिक राशियाँ नहीं हैं, बल्कि एक ही राशि के दो रूप हैं। द्रव्यमान को ऊर्जा में तथा ऊर्जा को द्रव्यमान में बदला जा सकता है। द्रव्यमान तथा ऊर्जा के बीच तुल्य सम्बन्ध E = mc2 है। जिसमें E (जूल में) ऊर्जा तथा m (किलोग्राम में) द्रव्यमान है। इसके अनुसार यदि ऊर्जा E विलुप्त हो जाये, तो द्रव्यमान m बढ़ जाता है तथा यदि द्रव्यमान m नष्ट हो जाये, तो इसके समतुल्य ऊर्जा E उत्पन्न होती है।

उदाहरण के लिए एक नाभिकीय क्रिया (nuclear reaction) में न्यूक्लिऑनों (प्रोटॉन न्यूट्रॉन) की कुल संख्या नियत रहती है जबकि प्रक्रिया में क्रिया करने वाले नाभिकों का कुल द्रव्यमान, क्रिया से पहले व बाद में, नियत नहीं रहता बल्कि इनमें थोड़ा-सा अन्तर आ जाता है; इस अन्तर को द्रव्यमान क्षति (mass defect) कहते हैं। यह द्रव्यमान क्षति ऊर्जा के रूप में प्रकट होती है। इस प्रकार व्यापक द्रव्यमान-ऊर्जा का संरक्षण नियम यह है कि विश्व की सम्पूर्ण द्रव्यमान तथा ऊर्जा का (दोनों एक ही मात्रक में) योग संरक्षित रहता है।

संरक्षी बल वह बल है जिसके द्वारा कृत कार्य प्रारम्भिक और अन्तिम बिन्दुओं के बीच के पथ पर निर्भर न करे अथवा सम्पूर्ण चक्रीय प्रकम में बल द्वारा कुल ‘कृत कार्य शून्य हो ।

आवेश संरक्षण (Conservation of Charge) : इसके अनुसार एक विलगित निकाय ( isolated system) का कुल आवेश संरक्षित रहता है। इन नियमों के अतिरिक्त सूक्ष्म निकायों जैसे नाभिकीय क्रियाओं में कुछ अन्य संरक्षण नियम भी लागू होते हैं।

इसे भी पढ़े – Physics Class 11 Syllabus

प्रकृति के संरक्षण नियम अत्यधिक सरल एवं व्यापक होने के साथ-साथ व्यवहार में भी अत्यन्त उपयोगी हैं। उदाहरण के लिए दो कणों की टक्कर में अत्यन्त जटिल बल कार्य करते हैं, तथापि संवेग संरक्षण के नियम इस जटिलता में न पड़कर टक्कर के बाद कणों की गति के बारे में यथासम्भव जानकारी देते हैं। नाभिकीय तथा मूल कणों से सम्बन्धित घटनाओं में भी संरक्षण नियम अत्यन्त उपयोगी है। उदाहरण के लिए, ऊर्जा तथा संवेग संरक्षण नियमों का उपयोग करके वुल्फगेंग पाउली (Wolfgang Pauli) ने 1931 में बीटा-क्षय (p-decay) में एक नये कण (न्यूट्रीनो) के उत्पन्न होने का सही पूर्वानुमान लगाया था।

प्रकृति की सममितियों (symmetries) का संरक्षण नियमों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए, यदि किसी निकाय का समय के साथ स्थानान्तरण सममित रहता है, तो निकाय की ऊर्जा संरक्षित रहती है।

  • यदि किसी निकाय के दिक्स्थान का रेखीय स्थानान्तरण सममित है, तो निकाय का रेखीय संवेग संरक्षित रहता है।
  • इसी प्रकार यदि किसी निकाय का दिक्स्थान समदैशिक है, तो निकाय का कोणीय संवेग संरक्षित रहता है।
  • इस प्रकार, प्रकृति की सममिति की संरक्षण नियमों तथा सिद्धान्तों में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

Conclusion: Physical World Class 11 Notes in Hindi

भौतिक दुनिया को समझना कक्षा 11 भौतिकी के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भौतिकी में अधिक उन्नत अवधारणाओं की नींव रखता है। इस लेख में, हमने भौतिक विज्ञान की बुनियादी अवधारणाओं, सिद्धांतों और अनुप्रयोगों को शामिल किया है जो कक्षा 11 के छात्रों को समझने के लिए आवश्यक हैं। इन अवधारणाओं में महारत हासिल करके, छात्र भौतिक दुनिया और हमारे दैनिक जीवन में इसके अनुप्रयोगों की गहरी समझ विकसित कर सकते हैं।

भौतिकी की शाखाएँ क्या हैं?

भौतिकी की शाखाओं में शास्त्रीय यांत्रिकी, ऊष्मप्रवैगिकी, विद्युत चुंबकत्व, आधुनिक भौतिकी और खगोल भौतिकी शामिल हैं।

भौतिकी के नियम क्या हैं?

भौतिकी के नियमों में न्यूटन के गति के नियम, ऊष्मप्रवैगिकी के नियम, कूलम्ब का नियम और ओम का नियम शामिल हैं।

भौतिक जगत क्या है?

भौतिक जगत में पदार्थ और उसके गुण, गति और उसके प्रकार, ऊर्जा और उसके रूप, और तरंगें और उनकी विशेषताएं शामिल हैं।

भौतिकी के सिद्धांत क्या हैं?

भौतिकी के सिद्धांतों में सापेक्षता का सिद्धांत, क्वांटम यांत्रिकी, विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत और परमाणु सिद्धांत शामिल हैं।

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